Gautama Buddha's Biography |
समाज में परिवर्तन लाने में उन्होंने बहुत ही बड़ा योगदान दिया था सिद्धार्थ गौतम के विचारों को फॉलो करके ना लोग अपने जिंदगी में सिर्फ सफल हुए बल्कि लोगों के मन में सभी जीवो के प्रति सद्भावना का विकास हुआ इसीलिए गौतम बुद्ध को करुणामूर्ति भी कहा जाता है तो आज हम गौतम बुद्ध के बारे में उनकी जिंदगी के बारे में शुरू से लास्ट तक सब कुछ बात करने वाले हैं उम्मीद करता हूं आपको यह स्टोरी अच्छी लगेगी तो शुरू करते हैं आज की बातें!
हाय मैं हूं शुभम ठाकुर और आप सब का स्टोरीज किंग पर बहुत स्वागत है सिद्धार्थ गौतम का जन्म 563 ईसा पूर्व नेपाल के लुंबिनी नामक स्थान पर शाक्य वंश में हुआ था पिताजी कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन और माताजी का नाम माया देवी महारानी माया देवी जब अपने पीहर देवदहा जा रही थी तो रास्ते में उनको प्रसव पीड़ा हुई और उन्होंने एक बालक को जन्म दिया!
हमारी परंपरागत कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि सिद्धार्थ गौतम के जन्म के 7 दिन बाद उनकी माता जी का निधन हो गया था माताजी के जाने के बाद सिद्धार्थ का पालन पोषण किया उनकी मौसी ने राजा शुद्धोधन की दूसरी रानी महा प्रजापति गौतम ने एक दिन सिद्धार्थ के भविष्य को देखने के लिए जब महान विद्वानों को बुलाया गया तो विद्वानों ने कहा कि यह बालक बड़ा होकर या तो चक्रवर्ती सम्राट बनकर
पूरी दुनिया पर राज करेगा!
पूरी दुनिया पर राज करेगा!
या फिर यह एक सन्यासी बनेगा समस्त जीवो के कल्याण के लिए इस बालक ने जन्म लिया है यह बालक गरीबों दुखियों और असहायो के कष्टों को दूर करेगा उनको कष्टों से मुक्ति दिलाएगा जब राजा शुद्धोधन को इस भविष्यवाणी के बारे में पता चला तो वह काफी सतर्क हो गए उन्होंने इस भविष्यवाणी को गलत साबित करने के अपने प्रयास शुरू कर दिए क्योंकि वह चाहते थे !
कि सिद्धार्थ अपने राज्य सिंहासन पर बैठे एक राजा बने अपने पुत्र कर्तव्य का पालन करें इसीलिए उन्होंने सिद्धार्थ को तमाम दुख दर्द और कष्टों से दूर रखा नगर में जितने भी रोगी लोग थे वृद्ध लोग थे सबको नगर से निकाल के उनके लिए एक अलग नगरी बनवा दि ताकि सिद्धार्थ को कभी भी वृद्धा अवस्था के बारे में रोगों के बारे में मृत्यु के बारे में पता ना चले!
राज महल के अंदर तमाम सुख सुविधाएं भोग विलास को उपलब्ध कराया गया ताकि सिद्धार्थ के मन में कभी भी सन्यास का ख्याल ना आए राज महल के अंदर ही उनके लिए शिक्षा का बंदोबस्त भी किया गया सिद्धार्थ को अपने गुरुओं से वेद और उपनिषदों की शिक्षा मिली थी बाकी सभा की बैठकों में और सभाओं में उपस्थित होकर उन्होंने शासन कला भी सीख लि!
सिद्धार्थ बाकी बच्चों की तरह चंचल नहीं थे वह एक वृक्ष के नीचे शांति से बैठ कर दुनिया के रंग ढंग के बारे में चिंतन किया करते थे कि यह ऐसा क्यों है वह ऐसा क्यों है 547 ईसा पूर्व 16 वर्षीय सिद्धार्थ का विवाह राजकुमारी यशोधरा से करा दिया गया इतना जल्दी विवाह इसलिए करा दिया गया ताकि सिद्धार्थ सांसारिक मोहमाया में बंध जाए वजह वही कि उनके दिमाग में सन्यास लेने का कोई ख्याल ना आए!
लेकिन सिद्धार्थ ने कभी भी किसी भी भोग विलास को अपने ऊपर हावी ही नहीं होने दिया वह अपनी बीवी से भी ज्ञान की ही बातें किया करते थे उनका कहना था कि इस दुनिया में केवल स्त्री ही है जो पुरुष के आत्मा को बांध सकती है कुछ वक्त के बाद यशोधरा ने पुत्र राहुल को जन्म दिया सिद्धार्थ कभी-कभी अपने महल के बाहर घूमने निकलते थे ताकि वह दुनिया को देख सकें!
एक बार अपनी नगर यात्रा के दौरान उन्होंने एक कमजोर और बूढ़े व्यक्ति को देखा जो झुक कर चल रहा था और जिसकी आंखें अंदर घुसी हुई थी इस दृश्य ने सिद्धार्थ के मन को अंदर से विचलित कर दिया जब उन्हें समझ आया कि दुनिया में दुख क्या होता है आगे चलकर उन्होंने एक बीमार व्यक्ति को देखा जो अपने बीमारी के दर्द में चिल्ला रहा था तड़प रहा था!
तब उन्हें समझ में आया कि रोग क्या होता है और इस दृश्य ने उनको बहुत ही दुख दीया उनको यह सारी भोग विलास की चीजें व्यर्थ लगने लगी आगे चलकर उन्होंने एक सब को देखा जिसको चार लोग अपने कंधे पर लेकर जा रहे थे और उसके घर वाले पीछे बहुत ही रो रहे थे तड़प रहे थे तब उन्हें पता चला की मृत्यु क्या होता है उन्हें समझ में आ गया की जिस इंसान का जन्म होता हैं निश्चित ही वह मृत्यु को प्राप्त करता हैं!
और तब उनके मन में विरक्ति की भावना जांगी आगे चलके उन्होंने एक सन्यासी को देखा जो सारे सांसारिक सुखों से दूर प्रसन्न चित वाला था मानो की वह सारे दुख दर्द से परे हो चुका है तब उन्होंने संकल्प किया कि वह सारे भोग विलास छोड़कर सारी मोह माया छोड़ कर सन्यास ग्रहण करेंगे उनके मन में सवाल था!
की दुनिया में इतने सारे दुख हैं इसका कारण क्या है हर जीव शोक और संताप से पीड़ित है इसका निवारण क्या है और इन सवालों के जवाब को खोजने के लिए उन्होंने रात को अपने बीवी यशोधरा और अपने पुत्र राहुल को सोता हुआ छोड़कर क्रूर त्याग कर दिया कहा जाता है कि सिद्धार्थ के पिता जी यानी कि राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के लिए तीन अलग-अलग रुत्व के हिसाब से तीन अलग-अलग महल बनवाए थे!
जिसमें दुनिया का हर ऐसो आराम था लेकिन इतना ऐसो आराम भी सिद्धार्थ को रोकने में असफल रहा सिद्धार्थ ने जब क्रूर त्याग किया तब उनकी उम्र सिर्फ 29 साल थी घर छोड़ने के बाद उन्होंने कई सारे ज्ञानियों से ज्ञान प्राप्त किया और तप के मार की महानता को जानने की कोशिश की सिद्धार्थ परम सत्य वह शांति की खोज के लिए!
गया के पास उर्विल के जंगलों तक पहुंच गए थे वहां पर उन्होंने 6 साल तक कठोर तपस्या की लेकिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई इस दौरान उन्होंने साधुओं की तरह भोजन का भी त्याग कर दिया था इसी तरीके से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे तपस्या के दौरान उनका शरीर नर कंकाल के समान बन गया था मानौ की मृत्यु के बिल्कुल करीब हो
और तब जंगल के पास रहने वाले एक चरवाहे की बेटी सुजाता ने उनको खीर खिलाई थी और इससे उनके शरीर में शक्ति का वापिस संचार हुआ था तब उन्हें एहसास हुआ कि अपने शरीर को तकलीफ देकर ईश्वर या फिर मुक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती हैं उन्हें एहसास हुआ कि दुनिया में किसी भी चीज की अति अच्छी नहीं है!
उन्हें एहसास हुआ कि ईश्वर की प्रति के लिए या फिर मुक्ति की प्राप्ति के लिए अपने शरीर को कष्ट देना यह भी एक अपराध ही है यही नहीं सत्य का ज्ञान होने के बाद महात्मा बुद्ध ने तप और तपस्या के तरीको की भी निंदा की थी खैर हम वहीं से शुरु करते हैं जहां से हमारी बात अधूरी है तो ऐसे विचरण करते-करते सिद्धार्थ 1 दिन बिहार के गया आ पहुंचे वहां पर एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर ज्ञान करने लगे!
उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि जब तक मुझे ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी तब तक मैं यहां से नहीं हिलूंगा 528 ईसा पूर्व पूर्णिमा की रात को 35 वर्षीय सिद्धार्थ को उस पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई इस घटना के बाद उन्हें गौतम बुध कहा जाने लगा जिस पेड़ के नीचे वह बैठे थे उसे बोधि वृक्ष कहा जाने लगा जिस जगह पर वह पेड़ था उसे बोधगया कहा जाने लगा!
ज्ञान की प्राप्ति हो जाने के बाद उन्होंने अपना पहला उपदेश सारनाथ में अपने 5 मित्रों को दिया उनको दिक्षा दी और आगे धर्म के प्रचार के लिए उनको भेज दिया गया उसके बाद उन्होंने पालीपाशा में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करना शुरू किया देखते ही देखते पूरे भारत के अलग-अलग प्रदेशों में उनके हजारों अनुयाई फैल गए और एक संघ का गठन हुआ और उस संघ ने उनके उपदेशों को बौद्ध धर्म के उपदेशों को पूरी दुनिया में फैलाया!
गौतम बुद्ध ने तत्कालीन रोडियो और अंधविश्वासों का खंडन करते हुए एक सहज मानव धर्म की स्थापना की उनका कहना था कि सत्य संयम और अहिंसा का पालन करते हुए सबको सरल जीवन व्यतीत करना चाहिए बौद्ध धर्म सबके लिए सभी जाति के लोगों के लिए खुला है वहां पर कोई जात पात या उच्च नीच ऐसा कोई भेदभाव नहीं है!
उनका कहना है कि संसार में जितने भी दुख हैं उनका कारण है इच्छा आकांशा इच्छाओं से मुक्त होने के बाद ही आप दुखों से मुक्त हो सकते हैं और इसके लिए उन्होंने दुखों के निवारण के लिए उन्होंने अष्टांग मार्ग बताया है अष्टांग मार्ग यानि की सम्यक दृष्टी सम्यक भाषण सम्यक निर्वाह सम्यक पालन सम्यक विचार सम्यक ध्यान गौतम बुद्ध ना कोई जगत के निर्माता थे ना कोई ईश्वर के अवतार थे!
वह हमेशा स्वयं को एक मार्गदर्शक के रूप में ही बताते थे वह हमारी तरह एक आम इंसान थे जिसने अच्छे विचारों का पोषण किया और बुरे विचारों का त्याग किया है और ना सिर्फ अपनी खुद की मुक्ति के लिए बल्कि संसार के सभी जीवो के जीवन में सुख की प्राप्ति के लिए उनके कष्टों के निवारण के लिए!
उन्होंने अपने ऐसो आराम को सुख सुविधाओं को भोग विलास को क्षणभर में त्याग कर दिया था और इसी त्याग आत्मसमर्पण और दृढ़ संकल्प ने सिद्धार्थ को महात्मा बुद्ध बुध बना दिया 80 साल की उम्र में महात्मा बुद्ध को परिनिर्वाण प्राप्त हुआ था वैसाख के पूर्णिमा के दिन ही उनका जन्म हुआ था इसी दिन ही उनको ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन ही उनका महापरिनिर्वाण हुआ था!
ऐसा किसी भी और महापुरुष की जर्नी में नहीं हुआ है इसीलिए इस दिन को गौतम बुद्ध जयंती या फिर बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है ओके तो आज की कहानी यहीं तक रखते हैं उम्मीद करता हूं आपको यह अच्छा लगा होगा अगर अच्छा लगा है तो प्लीज अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करना और हमारा मनोबल बढ़ाने के लिए एक कमेंट अवश्य करना और हमारे साथ जुड़े रहने के लिए हमें सब्सक्राइब जरूर करें धन्यवाद सी यू बाय!
और तब उनके मन में विरक्ति की भावना जांगी आगे चलके उन्होंने एक सन्यासी को देखा जो सारे सांसारिक सुखों से दूर प्रसन्न चित वाला था मानो की वह सारे दुख दर्द से परे हो चुका है तब उन्होंने संकल्प किया कि वह सारे भोग विलास छोड़कर सारी मोह माया छोड़ कर सन्यास ग्रहण करेंगे उनके मन में सवाल था!
की दुनिया में इतने सारे दुख हैं इसका कारण क्या है हर जीव शोक और संताप से पीड़ित है इसका निवारण क्या है और इन सवालों के जवाब को खोजने के लिए उन्होंने रात को अपने बीवी यशोधरा और अपने पुत्र राहुल को सोता हुआ छोड़कर क्रूर त्याग कर दिया कहा जाता है कि सिद्धार्थ के पिता जी यानी कि राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के लिए तीन अलग-अलग रुत्व के हिसाब से तीन अलग-अलग महल बनवाए थे!
जिसमें दुनिया का हर ऐसो आराम था लेकिन इतना ऐसो आराम भी सिद्धार्थ को रोकने में असफल रहा सिद्धार्थ ने जब क्रूर त्याग किया तब उनकी उम्र सिर्फ 29 साल थी घर छोड़ने के बाद उन्होंने कई सारे ज्ञानियों से ज्ञान प्राप्त किया और तप के मार की महानता को जानने की कोशिश की सिद्धार्थ परम सत्य वह शांति की खोज के लिए!
गया के पास उर्विल के जंगलों तक पहुंच गए थे वहां पर उन्होंने 6 साल तक कठोर तपस्या की लेकिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई इस दौरान उन्होंने साधुओं की तरह भोजन का भी त्याग कर दिया था इसी तरीके से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे तपस्या के दौरान उनका शरीर नर कंकाल के समान बन गया था मानौ की मृत्यु के बिल्कुल करीब हो
और तब जंगल के पास रहने वाले एक चरवाहे की बेटी सुजाता ने उनको खीर खिलाई थी और इससे उनके शरीर में शक्ति का वापिस संचार हुआ था तब उन्हें एहसास हुआ कि अपने शरीर को तकलीफ देकर ईश्वर या फिर मुक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती हैं उन्हें एहसास हुआ कि दुनिया में किसी भी चीज की अति अच्छी नहीं है!
उन्हें एहसास हुआ कि ईश्वर की प्रति के लिए या फिर मुक्ति की प्राप्ति के लिए अपने शरीर को कष्ट देना यह भी एक अपराध ही है यही नहीं सत्य का ज्ञान होने के बाद महात्मा बुद्ध ने तप और तपस्या के तरीको की भी निंदा की थी खैर हम वहीं से शुरु करते हैं जहां से हमारी बात अधूरी है तो ऐसे विचरण करते-करते सिद्धार्थ 1 दिन बिहार के गया आ पहुंचे वहां पर एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर ज्ञान करने लगे!
उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि जब तक मुझे ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी तब तक मैं यहां से नहीं हिलूंगा 528 ईसा पूर्व पूर्णिमा की रात को 35 वर्षीय सिद्धार्थ को उस पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई इस घटना के बाद उन्हें गौतम बुध कहा जाने लगा जिस पेड़ के नीचे वह बैठे थे उसे बोधि वृक्ष कहा जाने लगा जिस जगह पर वह पेड़ था उसे बोधगया कहा जाने लगा!
ज्ञान की प्राप्ति हो जाने के बाद उन्होंने अपना पहला उपदेश सारनाथ में अपने 5 मित्रों को दिया उनको दिक्षा दी और आगे धर्म के प्रचार के लिए उनको भेज दिया गया उसके बाद उन्होंने पालीपाशा में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करना शुरू किया देखते ही देखते पूरे भारत के अलग-अलग प्रदेशों में उनके हजारों अनुयाई फैल गए और एक संघ का गठन हुआ और उस संघ ने उनके उपदेशों को बौद्ध धर्म के उपदेशों को पूरी दुनिया में फैलाया!
गौतम बुद्ध ने तत्कालीन रोडियो और अंधविश्वासों का खंडन करते हुए एक सहज मानव धर्म की स्थापना की उनका कहना था कि सत्य संयम और अहिंसा का पालन करते हुए सबको सरल जीवन व्यतीत करना चाहिए बौद्ध धर्म सबके लिए सभी जाति के लोगों के लिए खुला है वहां पर कोई जात पात या उच्च नीच ऐसा कोई भेदभाव नहीं है!
उनका कहना है कि संसार में जितने भी दुख हैं उनका कारण है इच्छा आकांशा इच्छाओं से मुक्त होने के बाद ही आप दुखों से मुक्त हो सकते हैं और इसके लिए उन्होंने दुखों के निवारण के लिए उन्होंने अष्टांग मार्ग बताया है अष्टांग मार्ग यानि की सम्यक दृष्टी सम्यक भाषण सम्यक निर्वाह सम्यक पालन सम्यक विचार सम्यक ध्यान गौतम बुद्ध ना कोई जगत के निर्माता थे ना कोई ईश्वर के अवतार थे!
वह हमेशा स्वयं को एक मार्गदर्शक के रूप में ही बताते थे वह हमारी तरह एक आम इंसान थे जिसने अच्छे विचारों का पोषण किया और बुरे विचारों का त्याग किया है और ना सिर्फ अपनी खुद की मुक्ति के लिए बल्कि संसार के सभी जीवो के जीवन में सुख की प्राप्ति के लिए उनके कष्टों के निवारण के लिए!
उन्होंने अपने ऐसो आराम को सुख सुविधाओं को भोग विलास को क्षणभर में त्याग कर दिया था और इसी त्याग आत्मसमर्पण और दृढ़ संकल्प ने सिद्धार्थ को महात्मा बुद्ध बुध बना दिया 80 साल की उम्र में महात्मा बुद्ध को परिनिर्वाण प्राप्त हुआ था वैसाख के पूर्णिमा के दिन ही उनका जन्म हुआ था इसी दिन ही उनको ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन ही उनका महापरिनिर्वाण हुआ था!
ऐसा किसी भी और महापुरुष की जर्नी में नहीं हुआ है इसीलिए इस दिन को गौतम बुद्ध जयंती या फिर बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है ओके तो आज की कहानी यहीं तक रखते हैं उम्मीद करता हूं आपको यह अच्छा लगा होगा अगर अच्छा लगा है तो प्लीज अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करना और हमारा मनोबल बढ़ाने के लिए एक कमेंट अवश्य करना और हमारे साथ जुड़े रहने के लिए हमें सब्सक्राइब जरूर करें धन्यवाद सी यू बाय!
गौतम बुद्ध की जीवनी,,gautama buddha's biography
Reviewed by Shubham Thakur
on
अप्रैल 22, 2020
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